Thursday, March 27, 2008

कशमकश


जिन्दगी का क्या भरोसा , कभी इस पार , कभी उस पार

खुशी या ग़म ऐक सिक्के के दो पहलू

दिन भर की कशमकश के बाद; शाम को वोही बेचैनी अगले दिन का ख्याल

किस लिए जिए जाता हूँ मैं किस शय का इंतज़ार है मुझे



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